दशकों से पुल का इंतजार
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित घरुरी गांव विकास से कोसों दूर है। आजादी के 77 साल बाद भी यहां के लोग ट्रॉली के सहारे नदी पार करने को मजबूर हैं। यह समस्या केवल विद्यार्थियों तक सीमित नहीं है, बल्कि गर्भवती महिलाओं और गंभीर रोगियों के लिए भी बेहद चुनौतीपूर्ण है।
ट्रॉली से सफर – खतरे से खाली नहीं
गांव से बाहर जाने के लिए लोगों को ट्रॉली का सहारा लेना पड़ता है। यह ट्रॉली रस्सी के सहारे खींची जाती है, जो अत्यधिक जोखिम भरा कार्य है। ट्रॉली में जरा सी चूक बड़े हादसे को जन्म दे सकती है। कई बार बारिश और तेज़ हवा के कारण इस ट्रॉली का उपयोग असंभव हो जाता है।
छात्र जीवन का कठिन सफर
यहां के बच्चों को स्कूल जाने के लिए पहले ट्रॉली से नदी पार करनी पड़ती है, फिर दो किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी होती है। इन दिनों बोर्ड परीक्षाएं चल रही हैं, जिसके कारण छात्रों को और अधिक परेशानी उठानी पड़ रही है। कई बार रस्सी खींचते-खींचते बच्चों के हाथ भी दुख जाते हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्दशा
यह स्थिति तब और भयावह हो जाती है जब किसी गर्भवती महिला या बीमार व्यक्ति को अस्पताल ले जाना पड़ता है। समय पर चिकित्सा सुविधा न मिल पाने के कारण कई लोगों की जान खतरे में पड़ जाती है। बारिश के मौसम में स्थिति और विकट हो जाती है।
सरकार से गुहार
सरकार ने 2024 में यहां पैदल पुल निर्माण की योजना को मंजूरी दी थी, लेकिन अभी तक काम शुरू नहीं हुआ है। ग्रामीणों की मांग है कि जब तक पुल नहीं बनता, तब तक पीएसी के जवानों को तैनात किया जाए ताकि लोगों को सुरक्षित ट्रॉली पार कराने में मदद मिल सके।