शीतकाल के लिए बंद हुए तुंगनाथ मंदिर के कपाट
रुद्रप्रयाग जिले में स्थित तृतीय केदार श्री तुंगनाथ मंदिर के कपाट आज सुबह शुभ मुहूर्त में शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। यह मंदिर पंचकेदारों में सबसे प्रतिष्ठित है और विश्व का सबसे ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिर है। कपाट बंद होने के इस विशेष अवसर पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी, जिन्होंने भगवान तुंगनाथ के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। भक्तों ने मंदिर की परिक्रमा की और धार्मिक आयोजन में भाग लिया।
उत्सव डोली का चोपता के लिए प्रस्थान
कपाट बंद होने के बाद भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह डोली को विशेष पूजा-अर्चना के बाद चोपता के लिए रवाना किया गया। डोली यात्रा के दौरान स्थानीय वाद्य यंत्रों जैसे ढोल-दमाऊं की ध्वनि और ‘जय बाबा तुंगनाथ’ के उद्घोष से वातावरण भक्तिमय हो उठा। इस यात्रा में अखोड़ी और हुडु गांव के हक-हकूकधारियों ने भी हिस्सा लिया और अपने परंपरागत अधिकारों का निर्वहन किया।
डोली का पड़ाव और मक्कुमठ में गद्दीस्थल
भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह डोली आज चोपता में विश्राम करेगी। इसके बाद 5 और 6 नवंबर को डोली भुलकण में प्रवास करेगी। अंतिम चरण में 7 नवंबर को डोली मक्कुमठ पहुंचेगी, जहां श्री मर्कटेश्वर मंदिर में भगवान तुंगनाथ को शीतकालीन गद्दीस्थल में विराजमान किया जाएगा।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
तुंगनाथ मंदिर के कपाट बंद होने की प्रक्रिया केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह परंपरा और संस्कृति का प्रतीक भी है। पंचकेदारों की यात्रा में यह मंदिर महत्वपूर्ण पड़ाव है।
भक्तों के लिए नया अध्याय
कपाट बंद होने के बाद भक्त मक्कुमठ में भगवान तुंगनाथ के दर्शन कर सकते हैं। यह स्थान शीतकाल के दौरान भगवान महादेव की उपासना का केंद्र बनता है। इस दौरान मक्कुमठ में विशेष धार्मिक आयोजन होते हैं, जो भक्तों को आध्यात्मिक शांति प्रदान करते हैं।