प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ 2025 अपने धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के लिए ऐतिहासिक साबित हो रहा है। करोड़ों श्रद्धालु इस महाकुंभ में शामिल हो रहे हैं, जहां न केवल आध्यात्मिक चिंतन हो रहा है बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर भी गहन चर्चा हो रही है। संतों की धर्मसंसद में हिंदू राष्ट्र, मंदिर निर्माण और धर्माचार्यों की भूमिका प्रमुख विषय बने।
सनातन परंपराओं का संरक्षण
महाकुंभ में संतों ने सनातन परंपराओं को सुरक्षित रखने पर जोर दिया। वेदांती महाराज ने अपने विचार रखते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता की जड़ें अत्यंत गहरी हैं और इन्हें संरक्षित करना समय की मांग है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण की आवश्यकता है, ताकि सनातन धर्म की शिक्षाएं आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचे।
धर्मसंसद और हिंदू राष्ट्र की अवधारणा
महाकुंभ के दौरान आयोजित धर्मसंसद में संतों और धर्मगुरुओं ने हिंदू राष्ट्र की अवधारणा पर जोर दिया। वेदांती महाराज ने कहा कि भारत की पहचान सनातन संस्कृति से है और इसका संरक्षण प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है। कई संतों ने कहा कि हिंदू समाज को संगठित होकर अपने धार्मिक अधिकारों और संस्कृति की रक्षा करनी चाहिए।
मंदिर निर्माण में सभी का योगदान
वेदांती महाराज ने मंदिर निर्माण को केवल एक धार्मिक विषय न मानते हुए इसे सामाजिक सौहार्द्र से जोड़ने की अपील की। उन्होंने कहा कि मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं। उन्होंने मुसलमानों और अन्य समुदायों से भी आग्रह किया कि वे सौहार्द्रपूर्ण माहौल बनाए रखें और मंदिर निर्माण में सहयोग करें।
धर्माचार्यों की भूमिका पर विचार
महाकुंभ में संतों ने इस पर भी चर्चा की कि धर्माचार्य केवल प्रवचन देने तक सीमित न रहें, बल्कि समाज को जागरूक करने और सही दिशा दिखाने में भी अपनी भूमिका निभाएं। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक नेतृत्व का उद्देश्य समाज को एकजुट करना और नैतिकता को बढ़ावा देना होना चाहिए।
समापन और भविष्य की दिशा
महाकुंभ 2025 का समापन संतों के इस आह्वान के साथ हुआ कि भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता को संरक्षित करना हम सभी की जिम्मेदारी है। श्रद्धालुओं को भी इस दिशा में कार्य करने की प्रेरणा दी गई। महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का भी माध्यम बन रहा