परिचय
हिंदी सिनेमा की जानी-मानी अभिनेत्री दीप्ति नवल आज अपना 73वां जन्मदिन मना रही हैं। उनका जीवन शोहरत और संघर्ष से भरा रहा, लेकिन उनकी प्रेम कहानी किसी अधूरी दास्तान से कम नहीं। पेशेवर जिंदगी में सफलता की बुलंदियों को छूने वाली इस अभिनेत्री की निजी जिंदगी कई कठिनाइयों और उतार-चढ़ाव से गुजरी।
पहली शादी: कमल कपूर से अलगाव
दीप्ति नवल का विवाह निर्देशक और अभिनेता प्रकाश झा से हुआ था। हालांकि, यह रिश्ता ज्यादा समय तक नहीं चला और दोनों ने अलग होने का फैसला किया। इस शादी से उन्हें कोई संतान नहीं हुई, लेकिन दोनों ने एक बेटी को गोद लिया। अलगाव के बाद भी दोनों ने अपने रिश्ते को सम्मान के साथ संभाला और एक-दूसरे की जिंदगी में आगे बढ़ने का फैसला किया।
फरीदाबाद की गलियों से बॉलीवुड तक का सफर
दीप्ति नवल का जन्म 3 फरवरी 1952 को पंजाब के अमृतसर में हुआ था। उनकी पढ़ाई अमेरिका के न्यूयॉर्क में हुई, लेकिन उनका झुकाव हमेशा कला और अभिनय की ओर रहा। 1978 में श्याम बेनेगल की फिल्म ‘जुनून’ से उन्होंने बॉलीवुड में कदम रखा। इसके बाद ‘चश्मे बद्दूर’, ‘किसी से ना कहना’, ‘अंगूर’ और ‘अनकही’ जैसी फिल्मों में अपने सहज अभिनय से उन्होंने खास पहचान बनाई।
अपनी अधूरी प्रेम कहानी का दर्द
प्रकाश झा से अलग होने के बाद दीप्ति की जिंदगी में अभिनेता और निर्देशक विनोद पांडे आए। दोनों के बीच गहरी दोस्ती और प्यार था, लेकिन यह रिश्ता भी मुकम्मल नहीं हो सका। इसके बाद उनकी जिंदगी में संगीतकार और गायक पवन वर्मा आए, जिनसे उन्हें बेइंतहा मोहब्बत हो गई। लेकिन किस्मत को शायद यह रिश्ता मंजूर नहीं था। पवन वर्मा को कैंसर हो गया और कुछ ही सालों में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। दीप्ति इस हादसे से टूट गईं और उनका प्यार अधूरा ही रह गया।
कैंसर ने छीना सच्चा प्यार
दीप्ति नवल ने जब पवन वर्मा से अपने जीवन को आगे बढ़ाने का फैसला किया, तभी उनके जीवन में एक दुखद मोड़ आया। पवन कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझने लगे और अंततः उन्होंने दम तोड़ दिया। इस हादसे ने दीप्ति को पूरी तरह से तोड़कर रख दिया।
नए दौर में नई पहचान
दीप्ति नवल ने न सिर्फ अभिनय बल्कि लेखन और पेंटिंग में भी हाथ आजमाया। उन्होंने कविताएँ लिखीं और अपनी किताबें भी प्रकाशित कीं। वह समय-समय पर कला प्रदर्शनियों में अपनी चित्रकला का प्रदर्शन भी करती हैं।
दीप्ति नवल की जिंदगी में प्रेम हमेशा अधूरा ही रहा, लेकिन उन्होंने अपने संघर्षों को अपनी ताकत बनाया। आज भी वह हिंदी सिनेमा का एक सम्मानित नाम हैं, जिनका योगदान सदियों तक याद रखा जाएगा