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नेशनल

चारधाम यात्रा को जोड़ेगी नई रफ्तार: ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे परियोजना में तेजी, ट्रैक बिछाने का सर्वे शुरू

विनोद भण्डारी
Last updated: 2025/04/08 at 6:18 AM
विनोद भण्डारी
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5 Min Read
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2027 तक पूरा होगा 750 करोड़ की लागत वाला ट्रैक कार्य

उत्तराखंड में चल रही ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे परियोजना अब अपने निर्णायक चरण की ओर बढ़ रही है। भारतीय रेलवे की सहायक कंपनी इरकॉन इंटरनेशनल लिमिटेड ने ट्रैक बिछाने के लिए सर्वेक्षण कार्य शुरू कर दिया है। यह ट्रैक करीब 125 किलोमीटर लंबा होगा और इसके निर्माण पर 750 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है। परियोजना को वर्ष 2027 तक पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

Contents
2027 तक पूरा होगा 750 करोड़ की लागत वाला ट्रैक कार्यसुरंगों का नेटवर्क तैयार, 193 किमी सुरंग बन चुकी35 ब्रेकथ्रू पहले ही पूरे, शेष 11 जल्द होंगे पूरेबेलासलेस तकनीक का होगा प्रयोग19 पुलों में से आठ बनकर तैयार, 11 पर कार्य जारी83 किमी सुरंगों में अंतिम लाइनिंग कार्य पूर्णस्टेशनों का निर्माण भी हो रहा तेजबाकी स्टेशनों के लिए तीन टेंडर जारी होंगेउत्तराखंड को मिलेगा नया आयामबढ़ेगा पर्यटन, खुलेगा रोजगार का द्वारभूगर्भीय चुनौतियों के बावजूद सराहनीय प्रगतिनिष्कर्ष: भविष्य की रेखा खींचती यह परियोजना

सुरंगों का नेटवर्क तैयार, 193 किमी सुरंग बन चुकी

उत्तराखंड की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इस परियोजना में भारी संख्या में सुरंगों का निर्माण हो रहा है। कुल 16 मुख्य और सहायक सुरंगों की योजना बनाई गई है, जिनकी कुल लंबाई 213 किमी है। इनमें से 193 किमी सुरंग पहले ही तैयार हो चुकी है। मुख्य सुरंगों की लंबाई 125 किमी है, जिसमें से 93 किमी तक का कार्य पूर्ण हो चुका है।

35 ब्रेकथ्रू पहले ही पूरे, शेष 11 जल्द होंगे पूरे

सुरंगों में कुल 46 ब्रेकथ्रू होने हैं, जिसमें से अब तक 35 ब्रेकथ्रू सफलतापूर्वक किए जा चुके हैं। शेष 11 ब्रेकथ्रू कार्य को 2026 के अंत तक पूर्ण करने का लक्ष्य है। ब्रेकथ्रू का अर्थ है जब दोनों ओर से खोदी जा रही सुरंग एक बिंदु पर मिलती है।

बेलासलेस तकनीक का होगा प्रयोग

इस रेललाइन के अधिकांश हिस्से सुरंगों से होकर गुजरेंगे, इसलिए आधुनिक तकनीक के तहत बेलासलेस ट्रैक (Ballastless Track) बिछाया जाएगा। इससे ट्रैक का रखरखाव कम और यात्रा अधिक सुरक्षित होगी। यह तकनीक विशेष रूप से सुरंगों के भीतर ट्रैक बिछाने में उपयोगी मानी जाती है।

19 पुलों में से आठ बनकर तैयार, 11 पर कार्य जारी

इस परियोजना में केवल सुरंगें ही नहीं बल्कि 19 बड़े और छोटे पुलों का निर्माण भी शामिल है। अब तक चंद्रभागा, शिवपुरी, गूलर, ब्यासी, कोड़ियाला, पौड़ी नाला, लक्ष्मोली और श्रीनगर पुल बनकर तैयार हो चुके हैं। शेष 11 पुलों का लगभग 60% निर्माण पूरा हो चुका है और सभी को 2026 के अंत तक पूरा करने का लक्ष्य है।

83 किमी सुरंगों में अंतिम लाइनिंग कार्य पूर्ण

परियोजना अधिकारियों ने बताया कि अब तक 83 किलोमीटर सुरंगों में अंतिम लाइनिंग का काम पूरा कर लिया गया है। इसमें सुरंग की छत, दीवार और फिनिशिंग का कार्य शामिल होता है, जो ट्रैक बिछाने से पहले जरूरी होता है।

स्टेशनों का निर्माण भी हो रहा तेज

परियोजना के अंतर्गत कुल 13 रेलवे स्टेशनों का निर्माण किया जाना है। इनमें से वीरभद्र और योगनगरी स्टेशन 2020 में ही बनकर तैयार हो चुके हैं। शिवपुरी और ब्यासी स्टेशनों के लिए टेंडर प्रक्रिया पूरी हो गई है और इनका निर्माण 61 करोड़ रुपये की लागत से किया जाएगा।

बाकी स्टेशनों के लिए तीन टेंडर जारी होंगे

शेष 9 स्टेशनों के लिए तीन अलग-अलग टेंडर की योजना है:

  • पहला टेंडर: देवप्रयाग, जनासू, मलेथा और श्रीनगर
  • दूसरा टेंडर: धारीदेवी, घोलतीर, तिलड़ी और गौचर
  • तीसरा टेंडर: कर्णप्रयाग स्टेशन (परियोजना का सबसे बड़ा स्टेशन)

इन सभी स्टेशनों के निर्माण पर लगभग 550 करोड़ रुपये खर्च होंगे।

उत्तराखंड को मिलेगा नया आयाम

यह रेलवे लाइन उत्तराखंड के लोगों के लिए एक वरदान साबित होगी। इससे गढ़वाल क्षेत्र के शहरों और कस्बों को सीधा रेल संपर्क मिलेगा। साथ ही चारधाम यात्रा पर आने वाले लाखों श्रद्धालुओं के लिए भी यह मार्ग बेहद सुविधाजनक होगा।

बढ़ेगा पर्यटन, खुलेगा रोजगार का द्वार

रेल संपर्क स्थापित होने से इस क्षेत्र में पर्यटन को नई उड़ान मिलेगी। ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक यात्रा का समय घटेगा और विदेशी सैलानियों को भी पहाड़ों तक पहुंचना आसान होगा। साथ ही, निर्माण कार्यों और स्टेशन संचालन से हजारों लोगों को स्थानीय रोजगार भी मिलेगा।

भूगर्भीय चुनौतियों के बावजूद सराहनीय प्रगति

उत्तराखंड की दुर्गम पर्वतीय भूगोल को देखते हुए यह परियोजना काफी चुनौतीपूर्ण मानी जाती है। लेकिन इरकॉन इंटरनेशनल द्वारा अपनाई गई आधुनिक तकनीकों और सुरक्षा उपायों के चलते कार्य तेजी से हो रहा है। टनल बोरिंग मशीन (TBM), ड्रिल एंड ब्लास्ट तकनीक और सॉफ्ट ग्राउंड ट्रीटमेंट जैसी आधुनिक विधियों का इस्तेमाल परियोजना की सफलता का कारण बन रहा है।

निष्कर्ष: भविष्य की रेखा खींचती यह परियोजना

ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे परियोजना न केवल उत्तराखंड के विकास को गति देगी, बल्कि यह राज्य की आर्थिक, सामाजिक और पर्यटन व्यवस्था को भी नई दिशा देगी। ट्रैक बिछाने का कार्य शुरू हो जाना इस बात का संकेत है कि यह सपना अब हकीकत बनने के करीब है।

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