संस्कार और संस्कृति का संगम बनी किरन की शादी
भारतीय सेना में अपनी सेवा दे रही उत्तराखंड की बेटी किरन पुंडीर ने समाज को एक नई दिशा देने का कार्य किया है। उनकी शादी न केवल एक व्यक्तिगत खुशी का अवसर था, बल्कि यह एक सामाजिक बदलाव की शुरुआत भी बनी। चंबा ब्लॉक के भंडार गांव की निवासी किरन ने अपने विवाह में शराब को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर यह साबित कर दिया कि खुशी बिना नशीले पदार्थों के भी मनाई जा सकती है।
शादी में पहाड़ी व्यंजनों का विशेष स्थान
आमतौर पर देखा जाता है कि शादी समारोहों में महंगी सजावट, कॉकटेल पार्टियों और विदेशी व्यंजनों का चलन बढ़ रहा है, लेकिन किरन पुंडीर ने अपने विवाह में पहाड़ी व्यंजनों को प्राथमिकता दी। उनके विवाह समारोह में पारंपरिक उत्तराखंडी पकवानों को परोसा गया, जिससे मेहमानों को पहाड़ी स्वाद का आनंद लेने का अवसर मिला।
रॉड्स संस्था द्वारा सम्मानित
किरन पुंडीर के इस सामाजिक प्रयास को रॉड्स संस्था, रानीचौरी द्वारा सराहा गया। संस्था ने उन्हें एक प्रमाणपत्र देकर सम्मानित किया और उनकी इस पहल को समाज में प्रेरणा का स्रोत बताया। किरन ने बताया कि वह इस फैसले से पहले ‘शराब नहीं, संस्कार दीजिए’ अभियान से प्रेरित हुई थीं और उन्हें लगा कि यह कदम उनके परिवार और समाज के लिए भी लाभदायक होगा।
फौजी परिवार और संस्कारों का अद्भुत मेल
किरन पुंडीर और उनके पति सुरेंद्र दोनों भारतीय सेना में कार्यरत हैं। ऐसे में उनका यह निर्णय दर्शाता है कि एक सैनिक न केवल सीमा पर देश की रक्षा करता है बल्कि समाज में भी सकारात्मक परिवर्तन लाने की जिम्मेदारी निभाता है। उनके परिवार ने इस निर्णय को पूरी तरह से समर्थन दिया और शादी में केवल पारंपरिक तौर-तरीकों को अपनाया गया।
समाज के लिए एक प्रेरणा
किरन पुंडीर की यह पहल उन परिवारों के लिए एक प्रेरणा है जो दिखावे और आधुनिकता की दौड़ में अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। यह साबित करता है कि पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ भी एक शानदार और यादगार शादी की जा सकती है। समाज को चाहिए कि वह इस तरह की पहल को अपनाए और नई पीढ़ी को भी अपने मूल्यों से जोड़ने का प्रयास करे।