संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के सुधार को लेकर भारत ने अपनी मांगें फिर दोहराई हैं। वैश्विक शांति और सुरक्षा को बनाए रखने में यूएनएससी की भूमिका अहम है, लेकिन वर्तमान संरचना और प्रक्रिया में कई खामियां हैं, जिन्हें दूर किए बिना यह संगठन प्रभावी रूप से कार्य नहीं कर सकता। भारत ने विशेष रूप से आतंकी संगठनों को प्रतिबंधित करने की प्रक्रिया में पारदर्शिता की आवश्यकता पर बल दिया है।
सुधार की आवश्यकता
यूएनएससी की वर्तमान संरचना और इसके निर्णय लेने की प्रक्रिया में कई चुनौतियाँ हैं। पाँच स्थायी सदस्यों को प्राप्त वीटो शक्ति कई बार महत्वपूर्ण निर्णयों में बाधा बन जाती है। भारत और कई अन्य देशों का मानना है कि यह व्यवस्था पुरानी हो चुकी है और इसे आधुनिक वैश्विक आवश्यकताओं के अनुसार बदला जाना चाहिए।
पारदर्शिता और जवाबदेही
भारत के स्थायी प्रतिनिधि पी. हरीश ने इस विषय पर बोलते हुए कहा कि सुरक्षा परिषद के निर्णयों में पारदर्शिता और जवाबदेही होनी चाहिए। खासकर आतंकवाद से संबंधित मुद्दों पर निर्णय लेने में अधिक खुलापन होना चाहिए। कई बार देखा गया है कि कुछ देश अपने राजनीतिक हितों की रक्षा के लिए आतंकवादी संगठनों को प्रतिबंधित करने की प्रक्रिया को बाधित करते हैं।
चीन की भूमिका
भारत ने चीन पर आरोप लगाया है कि वह पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों को ब्लैकलिस्ट करने के प्रयासों में बाधा डालता है। यह केवल भारत की सुरक्षा का मुद्दा नहीं, बल्कि वैश्विक आतंकवाद से लड़ने का एक महत्वपूर्ण पहलू है। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अपील की है कि वे इस तरह की गुप्त प्रक्रियाओं को समाप्त करने के लिए पहल करें।
स्थायी सदस्यता की मांग
भारत लंबे समय से सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की मांग कर रहा है। भारत की आर्थिक और राजनीतिक शक्ति, साथ ही शांति अभियानों में इसकी प्रमुख भूमिका को देखते हुए, यह उचित होगा कि भारत को स्थायी सदस्यता प्रदान की जाए।
यूएनएससी में सुधार समय की मांग है। भारत ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है कि पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित किए बिना सुरक्षा परिषद की प्रासंगिकता पर सवाल उठते रहेंगे।